केन नदी के तट पर प्यार के प्रतीक नटबली मेले की रही धूम,केन नदी पर हजारों की भीड़ उमड़ी, युवाओं ने नौका विहार कर उठाया लुत्फ।
बाँदा,प्रेमिका को पाने के लिए पतले सूत की रस्सी पर चलकर नदी पार करते समय जान गवाँ बैठे युवा नटबली की याद में एक बार फिर आशिकों का मेला तैयार है। शनिवार को केन नदी और भूरागढ़ दुर्ग के बीच स्थित युवा नटबली और उसकी प्रेमिका की याद में बने मंदिरों पर मेला लगेगा।प्रेमी-प्रेमिका इस मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं।
शहर की सीमा पर केन नदी और भूरागढ़ दुर्ग के बीच दो प्राचीन मंदिर प्रेम में सबकुछ न्योछावर कर देने वाले नटबली की याद दिलाते हैं।किवदंती है,कि महोबा जनपद के सुगिरा का रहने वाला नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग का किलेदार था।यहाँ से कुछ किलोमीटर दूर सरबई (मध्य प्रदेश) गाँव है।वहाँ नट जाति के लोग आबाद थे।
हमेशा करतब दिखाने और कामकाज के लिए नट भूरागढ़ आते थे।किले में काम करने वाले एक युवा नट से किलेदार की पुत्री को प्रेम हो गया।नोने अर्जुन सिंह को इसका पता चला तो पहले तो नाराज हुआ फिर बाद में उसने प्रेमी युवा नट से यह शर्त रखी कि सूत की रस्सी पर चलकर नदी पार करके किले में आए।यदि ऐसा कर लेगा तो वह अपनी पुत्री से उसकी शादी कर देगा।नट ने शर्त मान ली।खास मकर संक्रांति के दिन सन 1850 ईस्वी में नट ने प्रेमिका के पिता की शर्त पूरी क रने के लिए नदी के इस पार से लेकर किले तक रस्सी बाँध दी।इस पर चलता हुआ वह किले की ओर बढ़ने लगा।
उसका हौसला बढ़ाने के लिए नट बिरादरी के लोग रस्सी के नीचे चलकर बाजे-गाजे बजा रहे थे।नट ने रस्सी पर चलते हुए नदी पार कर ली और दुर्ग के करीब जा पहुँचा। यह तमाशा नोने अर्जुन सिंह किले से देख रहा था।उसकी पुत्री भी अपने प्रेमी के साहस का नजारा देख रही थी। युवा नट दुर्ग में पहुंचने को ही था कि तभी किलेदार नोने अर्जुन सिंह ने रांपी से रस्सी काट दी। नट नीचे चट्टानों पर आ गिरा और उसकी वहीं मौत हो गई।
प्रेमी की मौत का सदमा किलेदार की पुत्री को बर्दाश्त न हुआ और उसने भी दुर्ग से छलांग लगाकर जान दे दी।इन दोनों प्रेमी-प्रेमिकाओं की याद में घटनास्थल पर दो मंदिर बनाए गए।यह आज भी बरकरार हैं। नट बिरादरी के लोग इसे विशेष तौर पर पूजते हैं।प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए भी यह खास दिलचस्पी का स्थल बन गया।तभी से हर साल मकर संक्रांति के दिन यहाँ नटबली मेला लगता है।
नटबली की मजार में प्रेमी युगल मीठी रेवड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं और जीवन भर मधुर संबंधों को कायम रखने की कामना करते हैं।प्रेमी जोड़ों का मानना है कि अपने प्रेम को पाने में नाकाम रहे नटबली व उसकी प्रेमिका ताे अपनी जान देकर इतिहास रच दिया था,लेकिन वह प्रेमियों की मनोकामना पूरी करते हैं।
नटों के बलिदान और प्रेम का प्रतीक है नटबली मेला
वैसे,नटबली मेले की पृष्ठभूमि में प्रेमी-प्रेमिका की कहानी को इतिहासकार नकारते हैं।उनका कहना है कि यह मात्र एक किवदंती है। बताते हैं कि दरअसल मप्र के सरबई गांव के नटों ने भूरागढ़ दुर्ग को बचाने के लिए अंग्रेजों से युद्ध कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।उनके बलिदान और बहादुरी की याद में नटबली स्थल बनाया गया।वैसे इतिहासकारों का मानना है कि इस स्थान पर कई और क्रांतिकारियों की समाधि और कब्रें भी हैं। लेकिन प्रेमी-प्रेमिका की कहानी ने इसे पीछे कर दिया है।
मकर संक्रांति पर ही हुए थे क्रांतिकारी शहीद
मकर संक्रांति (14 जनवरी) इतिहास के पन्नों में भी महत्वपूर्ण है।बुंदेली क्रांतिकारियों ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से मोर्चा लेकर 800 से अधिक क्रांतिकारियों ने में प्राण गंवाए थे।इनमें नट और मुस्लिम काफी संख्या में थे।अन्य जातियों के लोग भी शामिल रहे।1857 की क्रांति बाँदा जिले के लोगों अंग्रेजो लोहा लिया था और हथियार न होने के कारण शहीद हों गए थे।
इतिहासकार बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही अंग्रेज तानाशाह व्हिटलाक की 10 हजार सेना ने हमला करके गोयरा मुगली गाँव पर कब्जा कर लिया।वहाँ से आगे बढ़ी अंग्रेजी फौज का क्रांतिकारियों ने भूरागढ़ दुर्ग में जमकर मुकाबला किया। बड़ी संख्या में क्रांतिकारी शहीद हुए।इस युद्ध का नेतृत्व नवाब अली बहादुर सानी ने किया था।
मकर संक्रांति पर भूरागढ़ दुर्ग स्थित शहीद स्मारक में दी गई श्रद्धांजलि
मकर संक्रान्ति के पावन अवसर पर भूरागढ़ दुर्ग मे लगने वाले नटबली मेले में लोगों ने उत्साह पूर्वक भागीदारी की,वहीं शहीद स्मारक मे भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोपाल साहू मुनईया भैया , पूर्व चेयरमैन राज कुमार राज,राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन के जिला संगठन मंत्री मुकेश गुप्ता,युवा नेता रमाकांत द्विवेदी ने पुष्प चक्र व पुष्पांजलि अर्पित किया व शहीदों को स्मरण कर श्रद्धांजलि दिया।
ऐतिहासिक भूरागढ़ किले में राष्ट्रीय तिरंगा वितरण समिति के संयोजक एवं प्रमुख समाजसेवी शोभाराम कश्यप अपने परिवार के बच्चों के साथ।