तमाम कोशिशों के बाद जावित्री देवी को सती होने से नही रोक पाया था प्रशासन
वहीं अपने मायके कुचेन्दु(बबेरू) से रमाकांत तिवारी की पत्नी श्रीमती जावित्री देवी पोस्टमार्टम हाउस पहुँची और अपना पर्दा उठाते हुए पति के साथ सती होने का ऐलान कर दिया।चूंकि जारी का तिवारी परिवार धनाड्य जमीदारों में शामिल था, सो यह खबर जंगल में आग की तरह चारो तरफ फैल गई।
इस बीच प्रशासन ने अपनी पूरी ताकत लगा दी,कि सती न हो और निर्णय दिया कि अंतिम संस्कार पैतृक गांव जारी में न होकर प्रयागराज में किया जाए।वाहन आकर लग गए पर कोई भी वाहन आगे नही बढ़ पाया।
मजबूरन प्रशासन ने गाँव में ही अंतिम संस्कार की अनुमति दी। 13 जुलाई की सुबह श्रृंगार कर हाथ में नारियल लेकर जावित्री देवी घर से निकल दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ीं,वह तेज गति से चल रही थी लोगो का हुजूम उनके पीछे दौड़ रहा था।गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर जंगल में पहुँची जहाँ कोई आता जाता नही था,वहाँ एक कुआँ और छोटा सा चबूतरा था,जिसमे कुछ मूर्तियाँ रखी थी।
जावित्री देवी ने बताया कि 200 वर्ष पूर्व उनका चंदेल वंश में जन्म हुआ था और वह यहाँ पर सती हुई थी,वहाँ पूजा अर्चना करने के बाद वह गाँव की तरफ वापस लौटी और रास्ते में पड़ने वाले नाले को जहाँ कमर से पानी चल रहा था को पार कर गई।
खास बात यह रही,कि न तो वह और न ही उनके पीछे चल रहे पाँच लोगो के कपड़े भीगे न ही पैरों में कीचड़ लगा,जबकि बाकी लोगो के कपड़े नाला पार करते हुए भीग गए।चिता स्थल पहुँचने के बाद पति की चिता में चढ़ी और उनका सिर अपनी गोद मे रखा इसी दौरान जयकारों के बीच उनके देवर कृष्णदेव(बुदल्ली) ने उनसे पूछा,कि घटना में कौन कौन सामिल था क्या करना है,तो उन्होंने कहा कि किसी को कुछ नही करना सब ठीक हो जाएगा।
इसी दौरान उनकी चिता से अग्नि की एक बड़ी चिंगारी निकली जो कुछ ऊँचाई पर जाने के साथ ही बगल में लगी उनके देवर शिवाकांत की चिता पर जा गिरी और देखते ही देखते स्वतः ही अग्नि प्रज्वलित हुई और दोनों चिताए जलने लगी।अपार जनसमूह जयघोष करता रहा था।करीब छह माह तक चिता जलती रही,जिसे स्वामी परशुराम जी महाराज ने शांत कराया।
आज यह स्थल श्रृद्धालुओं की आस्था का केंद्र है,जहाँ देश के कोने कोने से दर्शनार्थियों का आना जाना बना रहता है।यह स्थान जनपद बाँदा मुख्यालय से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।